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ख़ूब-रूयों से यारियाँ न गईं | शाही शायरी
KHub-ruyon se yariyan na gain

ग़ज़ल

ख़ूब-रूयों से यारियाँ न गईं

हसरत मोहानी

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ख़ूब-रूयों से यारियाँ न गईं
दिल की बे-इख़्तियारियाँ न गईं

अक़्ल-ए-सब्र-आश्ना से कुछ न हुआ
शौक़ की बे-क़रारियाँ न गईं

दिन की सहरा-नवर्दियाँ न छुटीं
शब की अख़्तर-शुमारियाँ न गईं

होश याँ सद्द-ए-राह-ए-इल्म रहा
अक़्ल की हरज़ा-कारियाँ न गईं

थे जो हमरंग-ए-नाज़ उन के सितम
दिल की उम्मीदवारियाँ न गईं

हुस्न जब तक रहा नज़्ज़ारा-फ़रोश
सब्र की शर्मसारियाँ न गईं

तर्ज़-ए-'मोमिन' में मरहबा 'हसरत'
तेरी रंगीं-निगारियाँ न गईं