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ख़ूब है आशिक़ सूँ मिल रहना सजन | शाही शायरी
KHub hai aashiq sun mil rahna sajan

ग़ज़ल

ख़ूब है आशिक़ सूँ मिल रहना सजन

उबैदुल्लाह ख़ाँ मुब्तला

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ख़ूब है आशिक़ सूँ मिल रहना सजन
लाड उस का हर घड़ी सहना सजन

अपनी ख़ातिर सूँ दिया मुझ कूँ बिसार
क्या यही था तुझ सेती कहना सजन

रास्ती से तुझ कूँ करना है निबाह
हाथ जो पकड़ा मिरा दहना सजन

मत पहन ज़ेवर अपस सिंगार कूँ
मेहर-ओ-मह कूँ ऐब है गहना सजन

दिल ने हुश्यारी की कपड़े फाड़ कर
ख़िलअ'त-ए-दीवानगी पहना सजन

आशिक़ाँ का काम है ज्यूँ ख़ार-ओ-ख़स
शौक़ के दरियाओं में बहना सजन

'मुबतला' कूँ खो कि पचतावेगा तूँ
है मुझे वाजिब इता कहना सजन