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ख़ूब हाथों-हाथ बदला मिल गया बेदाद का | शाही शायरी
KHub hathon-hath badla mil gaya bedad ka

ग़ज़ल

ख़ूब हाथों-हाथ बदला मिल गया बेदाद का

सफ़ी औरंगाबादी

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ख़ूब हाथों-हाथ बदला मिल गया बेदाद का
आशियाँ मेरा जला घर जल गया सय्याद का

ये ख़ुलासा मुख़्तसर है इश्क़ की रूदाद का
शौक़ है उन को सताने का हमें फ़रियाद का

हर गिरफ़्तार-ए-क़फ़स क़ैदी है बे-मीआ'द का
छोड़ भी देता है जी चाहे अगर सय्याद का

वाह मुझ ऐसे मुक़य्यद को लक़ब आनरा का
मस्लहत सय्याद की है या करम सय्याद का

अब क्या करता है मातम बुलबुल-ए-नाशाद का
दिल लरज़ता है तक़य्या देख कर सय्याद का

हश्र उस दिन देखना हर बानी-ए-बे-दाद का
जब ज़मीं ताँबे की होगी आसमाँ फ़ौलाद का

क्या मिरी फ़रियाद का उन पर असर होता नहीं
जो उन्हें मा'लूम हो जाता सबब फ़रियाद का

कहते हैं बे-क़ाइदा फ़रियाद हम सुनते नहीं
फिर बताते भी नहीं वो क़ाएदा फ़रियाद का

एक ख़ुद-बीं को हुआ जिस वक़्त ख़ुद-बीनी का शौक़
बन गया मनडान सारे आलम-ए-ईजाद का

कुछ मिरी फ़रियाद भी उन पर असर करती नहीं
और कुछ वो भी असर लेते नहीं फ़रियाद का

आशिक़ी सर फोड़ लेने के सिवा कुछ भी नहीं
हम तो ये समझे हैं सुन कर माजरा फ़रहाद का

दाम का क्या ज़िक्र है मैं बंदा-ए-बे-दाम हूँ
शामत आई फँस गया मुँह देख कर सय्याद का

इंतिज़ाम-ए-आब-ओ-दाना है न तंज़ीम-ए-क़फ़स
मुझ से पूछो बोलता शहकार हूँ सय्याद का

नाला-ओ-फ़रियाद बहर-ए-ऐश हो जब ऐ 'सफ़ी'
फिर कहाँ तासीर नाले की असर फ़रियाद का