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ख़ुश्क रोटी तोड़नी है सर्द पानी चाहिए | शाही शायरी
KHushk roTi toDni hai sard pani chahiye

ग़ज़ल

ख़ुश्क रोटी तोड़नी है सर्द पानी चाहिए

अहमद जहाँगीर

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ख़ुश्क रोटी तोड़नी है सर्द पानी चाहिए
क्या किसी गिरजे की कुंडी खटख़टानी चाहिए

ऐ समाअ'त उस फ़ज़ा में आज भी मौजूद है
हाँ नवा-ए-नग़्मा-ए-कुन तुझ को आनी चाहिए

काहिना हम से रिवायत का मुकम्मल मत्न सुन
बत्न में जलती हुई शम-ए-मआ'नी चाहिए

साबिक़ा नक़्शे पे ताज़ा सल्तनत ईजाद हो
आसमाँ नीला बनाना घास धानी चाहिए

गुम-शुदा सूरज को रोता है मिरा यौम-ए-सपेद
सुरमई शब को चराग़-ए-आँ-जहानी चाहिए

हुस्न के गारे में आब-ए-इश्क़ की छींटें मिला
चम्पई रंगत में आतिश सनसनानी चाहिए

जिस्म की गोशा-नशीनी और कितने रोज़ है
बंदा-ए-रब्ब-ए-अली को ला-मकानी चाहिए