ख़ुश्क दरिया पड़ा है ख़्वाहिश का
ख़्वाब देखा था हम ने बारिश का
मुस्तक़िल दिल जलाए रखता है
है ये मौसम हवा की साज़िश का
उस से कहने को तो बहुत कुछ है
वक़्त मिलता नहीं गुज़ारिश का
कोई उस से तो कुछ नहीं कहता
बो रहा है जो बीच रंजिश का
पा-ब-ज़ंजीर चल रहे हैं जो हम
ये भी पहलू है इक नुमाइश का
फूल कल थे तो आज पत्थर हैं
ये भी अंदाज़ है सताइश का
मैं ने आँखों से गुफ़्तुगू कर ली
ये हुनर है ज़बाँ की बंदिश का
खिल रहे हैं गुलाब ज़ख़्मों के
शुक्रिया आप की नवाज़िश का
जारी मश्क़-ए-सुख़न रहे 'एजाज़'
कुछ सिला तो मिलेगा काविश का
ग़ज़ल
ख़ुश्क दरिया पड़ा है ख़्वाहिश का
एजाज़ रहमानी