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ख़ुश्क दरारों वाला दरिया | शाही शायरी
KHushk dararon wala dariya

ग़ज़ल

ख़ुश्क दरारों वाला दरिया

मेहदी जाफ़र

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ख़ुश्क दरारों वाला दरिया
ज़ेर ज़मीं है बाला दरिया

उस को बड़ा रास आया दरिया
मैं और देस निकाला दरिया

लहरों की तहरीर किनारे
रेत पे लिक्खा क़िस्सा दरिया

आओ ये अफ़्वाह उड़ाएँ
हम ने ख़्वाब में देखा दरिया

तह में अकसाँ नक़्श-ओ-मनाज़िर
ऊपर शहर के बहता दरिया

आज भी तेरे शहर हैं प्यासे
अब भी दूर है ख़ेमा दरिया

पुल पर ग़ोता-ख़ोर पले हैं
सिक्का भारी हल्का दरिया

दूर चराग़ की लौ पर ज़िंदा
सरमा का बर्फ़ीला दरिया

अपना साया ढूँड रहा हूँ
शाम है पल-भर थम जा दरिया