ख़ुश्क आँखों से लहू फूट के रोना इक दिन
वर्ना ले डूबेगा मुझ को मिरा होना इक दिन
क्या पता था तिरी जलती हुई साँसों की क़तार
मेरी साँसों ही पे डालेगी बिछौना इक दिन
एक भी रंग की लौ ऊँची न होने पाई
अन-गिनत रंगों में जिस को था समोना इक दिन
मैं कभी ज़ेहन के ज़ीनों से उतर आऊँगा
ला के रख दे मिरे हाथों पे खिलौना इक दिन
रोज़ बिन-बरसे गुज़र जाएँगे बादल कब तक
अपने अश्कों से 'सबा' उन को भिगोना इक दिन
ग़ज़ल
ख़ुश्क आँखों से लहू फूट के रोना इक दिन
अलीम सबा नवेदी