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ख़ुशियाँ थीं बेवफ़ा न रहीं ज़िंदगी के साथ | शाही शायरी
KHushiyan thin bewafa na rahin zindagi ke sath

ग़ज़ल

ख़ुशियाँ थीं बेवफ़ा न रहीं ज़िंदगी के साथ

बबल्स होरा सबा

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ख़ुशियाँ थीं बेवफ़ा न रहीं ज़िंदगी के साथ
ग़म बा-वफ़ा थे चलते रहे आदमी के साथ

ढलने लगी जवानी जो आई थी चार दिन
ठहरा बुढ़ापा क़ब्र तलक रहबरी के साथ

अंदाज़ ज़िंदगी के बदल कर जियो सदा
अपनों की बे-रुख़ी को सहो तुम ख़ुशी के साथ

पूजा है मैं ने रोज़-ओ-शब इस क़दर उसे
उस का ही नाम लिखती रही शायरी के साथ

मुझ को 'सबा' मिली है मसर्रत भी इस तरह
जैसे कि अजनबी हो किसी अजनबी के साथ