ख़ुशी याद आई न ग़म याद आए 
मोहब्बत के नाज़ ओ निअम याद आए 
ये क्यूँ दम-ब-दम हिचकियाँ आ रही हैं 
किया याद तुम ने कि हम याद आए 
गुलों की रविश देख कर गुलसिताँ में 
शहीदों के नक़्श-ए-क़दम याद आए 
बुरों का बहुत नाम जपती है दुनिया 
जो अच्छे ज़ियादा थे कम याद आए 
दम-ए-नज़अ जूँही अजल मुस्कुराई 
अचानक तुम्हारे करम याद आए 
मुसीबत में भी बार-हा 'वज्द' मुझ को 
ख़ुदा जानता है सनम याद आए
        ग़ज़ल
ख़ुशी याद आई न ग़म याद आए
सिकंदर अली वज्द

