ख़ुशी मिली न अगर मुझ को ज़ौक़-ए-ग़म तो मिला
मिली न दौलत-ए-दुनिया मुझे क़लम तो मिला
ख़ुशी में ख़ुश हूँ तो ग़म में भी मुस्कुराता हूँ
कि मुझ को ज़र्फ़-ए-पज़ीराई-ए-अलम तो मिला
नहीं है कम किसी जमशेद से मिरी तक़दीर
ब-शक्ल-ए-क़ल्ब मुझे एक जाम-ए-जम तो मिला
ग़लत है उम्र कटी मेरी सारी कुल्फ़त में
सुकून ज़ेर-ए-समा मुझ को एक-दम तो मिला
ये ज़िंदगी के कड़े कोस किस तरह कटते
खुशा-नसीब कि इक हम-सफ़र सनम तो मिला
नहीं है मंज़िल-ए-मक़्सूद अब ज़ियादा दूर
सँभाल ख़ुद को क़दम से मिरे क़दम तो मिला
न क्यूँ हो अपने मुक़द्दर पे नाज़ मुझ को 'सईद'
ब-फ़ज़्ल-ए-रब शरफ़-ए-बोसा-ए-हरम तो मिला

ग़ज़ल
ख़ुशी मिली न अगर मुझ को ज़ौक़-ए-ग़म तो मिला
जे. पी. सईद