ख़ुशी में ग़म की हालत कर के देखूँ 
उसे अपनी ज़रूरत कर के देखूँ 
ज़माना कह रहा है जाने क्या क्या 
कभी मैं भी मोहब्बत कर के देखूँ 
नज़र में अब यही इक रास्ता है 
कि ख़्वाबों को हक़ीक़त कर के देखूँ 
चले हैं आसमाँ छूने कई लोग 
ज़रा मैं भी तो हिम्मत कर के देखूँ 
ख़ुद अपने आप से इक रोज़ 'क़ैसर' 
मैं अपनी ही शिकायत कर के देखूँ
        ग़ज़ल
ख़ुशी में ग़म की हालत कर के देखूँ
नूरुल ऐन क़ैसर क़ासमी

