ख़ुशी में भी नवा-संज-ए-फ़ुग़ाँ हूँ
ज़मीन-ओ-आसमाँ का तर्ज़-दाँ हूँ
मैं अपनी बे-निशानी का निशाँ हूँ
हुजूम-ए-मातम-ए-उम्र-ए-रवाँ हूँ
तिरे जाते ही मेरी ज़ीस्त तोहमत
नहीं मिलता पता अपना कहाँ हूँ
ग़ुबार-ए-कारवान-ए-मोर है ज़ीस्त
ये ख़त्त-ए-यार से आशुफ़्ता-जाँ हूँ
नहीं कुछ काम बख़्त-ओ-आसमाँ से
मैं नाकामी में अपनी कामराँ हूँ
नहीं दम मारने का दम और उस पर
सरापा शम्अ' साँ शक्ल-ए-ज़बाँ हूँ
ख़ुदा ही गर न दे माशूक़-ओ-मय को
तो क्यूँ फिर मोहतसिब से सरगिराँ हूँ
वहाँ का रंग-ए-पर्रां आसमाँ है
मैं जिस आलम की तस्वीर-ए-गुमाँ हूँ
कोई आवारा मिल जाए तो पूछूँ
किधर से आया हूँ जाता कहाँ हूँ
निकल जाता है जी हर आरज़ू पर
पए-ख़ून-ए-जवानी में जवाँ हूँ
मिरा ग़म इशरत-ए-रफ़्ता का नग़्मा
कि मिस्ल-ए-गर्द बू-ए-कारवाँ हूँ
कवाकिब-हा-ए-क़िस्मत आसमाँ पर
न हूँ क्यूँ नुक्ता-चीं मैं नुक्ता-दाँ हूँ
'क़लक़' बे-रौनक़ी रौनक़ है मेरी
बहार-ए-उम्र-ए-हस्ती की ख़िज़ाँ हूँ
ग़ज़ल
ख़ुशी में भी नवा-संज-ए-फ़ुग़ाँ हूँ
ग़ुलाम मौला क़लक़