EN اردو
ख़ुशी कि चेहरे पे ग़म का जलाल साथ लिए | शाही शायरी
KHushi ki chehre pe gham ka jalal sath liye

ग़ज़ल

ख़ुशी कि चेहरे पे ग़म का जलाल साथ लिए

फ़ानी जोधपूरी

;

ख़ुशी कि चेहरे पे ग़म का जलाल साथ लिए
हयात मिलती है पर इंतिक़ाल साथ लिए

बुलंदियों पे सभी आ के भूल जाते हैं
उरूज आता है लेकिन ज़वाल साथ लिए

वो ख़ून आँखों से रोना अमल पुराना है
अब अश्क बहते हैं आँखों की खाल साथ लिए

कई जमी हुई परतें उधेड़ डालेगा
ये मुझ में कौन है उतरा कुदाल साथ लिए

ख़बर ये घोल न दे मछलियों को पानी में
मछेरे आएँगे कल सुब्ह जाल साथ लिए

यहाँ पे छोड़ दिया तो जवाब डस लेंगे
मैं लौट जाउँगा अपना सवाल साथ लिए

वो पेट के लिए काफ़ी नहीं है अब 'फ़ानी'
तू जा रहा है जो रिज़्क़-ए-हलाल साथ लिए