ख़ुशी के वक़्त से दौर-ए-मलाल से गुज़रे
तिरी तलाश में हद्द-ए-ख़याल से गुज़रे
हमें तो अस्ल में तन्हा तुझी से मिलना था
सो इक नज़र में तिरे ख़द्द-ओ-ख़ाल से गुज़रे
बुझे बुझे से हैं ग़ुंचों की ज़िंदगी के चराग़
सबा से कह दो चमन में ख़याल से गुज़रे
तिरे फ़क़ीर मोहब्बत के एक लम्हे में
हज़ार बार उरूज-ओ-ज़वाल से गुज़रे
जुनूँ की फ़ितरत-ए-आली पे बार है ऐ दोस्त
वो बंदगी जो मक़ाम-ए-सवाल से गुज़रे
कहीं न दामन-ए-आदाब-ए-इश्क़ को छोड़ा
फ़िराक़ ही की तरह हम विसाल से गुज़रे
दिल-ओ-नज़र को ख़बर तक नहीं हुई 'मैकश'
कुछ इस तरह वो हुदूद-ए-ख़याल से गुज़रे

ग़ज़ल
ख़ुशी के वक़्त से दौर-ए-मलाल से गुज़रे
मसूद मैकश मुरादाबादी