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ख़ुशी भी अब सरापा ग़म लगे है | शाही शायरी
KHushi bhi ab sarapa gham lage hai

ग़ज़ल

ख़ुशी भी अब सरापा ग़म लगे है

असअ'द बदायुनी

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ख़ुशी भी अब सरापा ग़म लगे है
तवज्जोह आप की कुछ कम लगे है

कोई हमदम नहीं दुनिया में लेकिन
जिसे देखो वही हमदम लगे है

मैं हूँ मजबूर अपने दिल से मुझ को
पराया ग़म भी अपना ग़म लगे है

बहारें हैं चमन में गुल ब-दामाँ
ख़िज़ाँ का सा मगर मौसम लगे है

जिधर देखो उधर शबनम के आँसू
चमन क्या है सफ़-ए-मातम लगे है

हर इक मजबूर से कह दो ये 'असअद'
हर इक मग़रूर का सर ख़म लगे है