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ख़ुश्बू को रंगतों पे उभरता हुआ भी देख | शाही शायरी
KHushbu ko rangton pe ubharta hua bhi dekh

ग़ज़ल

ख़ुश्बू को रंगतों पे उभरता हुआ भी देख

किश्वर नाहीद

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ख़ुश्बू को रंगतों पे उभरता हुआ भी देख
नक़्श-ए-ज़र-ए-बहार चमकता हुआ भी देख

रख के मदार-ए-शौक़ किसी आफ़्ताब पर
तू संग-ए-इंतिज़ार पिघलता हुआ भी देख

आँखों के गिर्द झाँकते हल्क़े न देख तू
सैल-ए-ख़जिस्ता-ख़ू को उतरता हुआ भी देख

बे-फ़ैज़ दश्त-ए-दर्द में आहिस्तगी के साथ
आहू-सरिश्त लोगों को चलता हुआ भी देख

रंग-ए-हिना को नक़्श-ए-क़दम से जुदा भी कर
सहरा में रख़्श-ए-शौक़ को गिरता हुआ भी भी देख

महसूस कर छलकते हुए शौक़ की जलन
यख़ चाँदनी में जिस्म को जलता हुआ भी देख

हर चीज़ दे के जाती है अपनी निशानियाँ
हर गुल में रंग-ए-सुब्ह झलकता हुआ भी देख

'नाहीद' चीरा-दस्ती-ए-याराँ अज़ीज़ रख
मौक़े के साथ उन को बदलता हुआ भी देख