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ख़ुशबू की तरह साथ लगा ले गई हम को | शाही शायरी
KHushbu ki tarah sath laga le gai hum ko

ग़ज़ल

ख़ुशबू की तरह साथ लगा ले गई हम को

इरफ़ान सिद्दीक़ी

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ख़ुशबू की तरह साथ लगा ले गई हम को
कूचे से तिरे बाद-ए-सबा ले गई हम को

पत्थर थे कि गौहर थे अब इस बात का क्या ज़िक्र
इक मौज बहर-हाल बहा ले गई हम को

फिर छोड़ दिया रेग-ए-सर-ए-राह समझ कर
कुछ दूर तो मौसम की हवा ले गई हम को

तुम कैसे गिरे आँधी में छितनार दरख़्तो
हम लोग तो पत्ते थे उड़ा ले गई हम को

हम कौन शनावर थे कि यूँ पार उतरते
सूखे हुए होंटों की दुआ ले गई हम को

इस शहर में ग़ारत-गर-ए-ईमाँ तो बहुत थे
कुछ घर की शराफ़त ही बचा ले गई हम को