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ख़ुशबुओं से मिरी हर साँस को भर देता है | शाही शायरी
KHushbuon se meri har sans ko bhar deta hai

ग़ज़ल

ख़ुशबुओं से मिरी हर साँस को भर देता है

शबनम वहीद

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ख़ुशबुओं से मिरी हर साँस को भर देता है
मौसम-ए-गुल तिरे आने की ख़बर देता है

मुझ से मिलता है मगर तेज़ हवाओं की तरह
हर क़दम पर मुझे जो शौक़-ए-सफ़र देता है

भर गई है मिरे दामन को नदी की इक मौज
लोग कहते हैं समुंदर ही गुहर देता है

ख़ामुशी मोहर लगा देती है होंटों पे मिरे
इस तरह भी वो रफ़ाक़त का समर देता है

और भी उम्र बढ़ा देता है मेरी 'शबनम'
मेरा सुरज मुझे जब सैल-ए-शरर देता है