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ख़ुश-रंग है गुल से गुल-ए-रुख़्सार तुम्हारा | शाही शायरी
KHush-rang hai gul se gul-e-ruKHsar tumhaara

ग़ज़ल

ख़ुश-रंग है गुल से गुल-ए-रुख़्सार तुम्हारा

राधे शियाम रस्तोगी अहक़र

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ख़ुश-रंग है गुल से गुल-ए-रुख़्सार तुम्हारा
रैहाँ से सिवा ख़त है नुमूदार तुम्हारा

मतलूब हो तुम दिल है तलबगार तुम्हारा
ये आइना है तिश्ना-ए-दीदार तुम्हारा

यूसुफ़ को कभी मुफ़्त भी लेती न 'ज़ुलेखा'
नज़्ज़ारा जो करती सर-ए-बाज़ार तुम्हारा

दामन का भी बोसा न लिया फ़र्त-ए-अदब से
अब तक नहीं ये बंदा गुनहगार तुम्हारा

गर्मी से जो ख़ुर्शीद-ए-क़यामत की जलेंगे
याद आएगा ये साया-ए-दीवार तुम्हारा

उश्शाक़ के सज्दों का भला ज़िक्र ही क्या है
हिंदू-ओ-मुसलमाँ है परस्तार तुम्हारा

तूती की तरह क्यूँ न सुख़न-संज हो 'अहक़र'
है सामने आईना-ए-रुख़्सार तुम्हारा