ख़ुश-रंग आसमान उड़ा ले गई हवा
ख़ुशबू का साएबान उड़ा ले गई हवा
काँटे उलझ के दामन-ए-हस्ती से रह गए
फूलों की दास्तान उड़ा ले गई हवा
आँखों में अब चमकते दर-ओ-बाम हैं कहाँ
ख़्वाबों का वो मकान उड़ा ले गई हवा
दिल के तअ'ल्लुक़ात की ख़ुशबू कहीं नहीं
मरबूत ख़ानदान उड़ा ले गई हवा
बे-सम्त ज़िंदगी मिरी बे-सम्त ही रही
मंज़िल का हर निशान उड़ा ले गई हवा
थी जिस के दम से जल्वा-ए-तहज़ीब-ए-नौ यहाँ
कब का वो ख़ाक-दान उड़ा ले गई हवा
क़िस्मत से आ गए थे हम अहल-ए-सितम के हाथ
वो तीर वो कमान उड़ा ले गई हवा
तूफ़ाँ से खेलती हुई कश्ती गुज़र गई
हर चंद बादबान उड़ा ले गई हवा
ज़ाहिर हुआ जो मतला-ए-दिल पर यक़ीं का नूर
पल भर में हर गुमान उड़ा ले गई हवा
बदला था जिन से 'नाज़' मिरा लहजा-ए-ग़ज़ल
वो तर्ज़ वो बयान उड़ा ले गई हवा
ग़ज़ल
ख़ुश-रंग आसमान उड़ा ले गई हवा
नाज़ क़ादरी