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ख़ुश-नज़र कह के टाल दे मुझ को | शाही शायरी
KHush-nazar kah ke Tal de mujhko

ग़ज़ल

ख़ुश-नज़र कह के टाल दे मुझ को

वक़ार वासिक़ी

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ख़ुश-नज़र कह के टाल दे मुझ को
या फिर अपनी मिसाल दे मुझ को

ख़ुश-बयानी का शुक्रिया लेकिन
जुरअत-ए-अर्ज़-ए-हाल दे मुझ को

तू भी हो जाए हम-ख़याल मिरा
कोई ऐसा ख़याल दे मुझ को

अहद-ए-हाज़िर तो नक़्श-ए-माज़ी है
अब नए माह-ओ-साल दे मुझ को

नज़र आती नहीं है राह-ए-फ़रार
दाएरे से निकाल दे मुझ को

तू है क्या ख़ुद को जानता हूँ मैं
कोई ऊँचा सवाल दे मुझ को