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ख़ुश-नज़र है न ख़ुश-ख़याल है ये | शाही शायरी
KHush-nazar hai na KHush-KHayal hai ye

ग़ज़ल

ख़ुश-नज़र है न ख़ुश-ख़याल है ये

हबाब तिर्मिज़ी

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ख़ुश-नज़र है न ख़ुश-ख़याल है ये
आज के दीदा-वर का हाल है ये

तुम मिरे दिल में क्यूँ नहीं आते
शहर-ए-र'अनाई-ए-जमाल है ये

मेरे चेहरे पे कुछ नहीं तहरीर
सिर्फ़ उनवान-ए-अर्ज़-ए-हाल है ये

वज्ह-ए-नाकामी-ए-वफ़ा क्या है
आप से आख़िरी सवाल है ये

चाहते भी हैं चाहते भी नहीं
दोस्ती की नई मिसाल है ये

कैसे सुलझेंगे काकुल-ए-दौराँ
कितना उलझा हुआ सवाल है ये

कौन जाने उरूज क्या होगा
आदमी का अगर ज़वाल है ये

ढूँढता है नई नई उफ़्ताद
दिल-ए-ईज़ा-तलब का हाल है ये

इस ज़माने में पाक-दामानी
अम्र मुमकिन नहीं मुहाल है ये

अब कोई आँख नम नहीं होती
दिल की दुनिया में ख़ुश्क साल है ये