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ख़ुश-फ़हमियों को ग़ौर का यारा नहीं रहा | शाही शायरी
KHush-fahmiyon ko ghaur ka yara nahin raha

ग़ज़ल

ख़ुश-फ़हमियों को ग़ौर का यारा नहीं रहा

याक़ूब उस्मानी

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ख़ुश-फ़हमियों को ग़ौर का यारा नहीं रहा
तूफ़ाँ की ज़द से दूर किनारा नहीं रहा

बढ़ बढ़ के ढूँढते हैं पनाहें नई नई
फ़ित्नों को तीरगी का सहारा नहीं रहा

बीता बयाँ बहा-ए-तमन्ना बढ़ा गईं
नक़्द-ए-सुकूँ गँवा के ख़सारा नहीं रहा

बाक़ी था जिस के दम से भरम एहतियाज का
हिम्मत को वो करम भी गवारा नहीं रहा

नाज़ाँ है अपनी फ़त्ह पे इस तरह मौत आज
जैसे कोई हयात का मारा नहीं रहा

ख़ुर्शीद इंक़लाब का आईना हो तो हो
मिज़्गाँ से गिर के अश्क सितारा नहीं रहा

'याक़ूब' लम्हे लम्हे से ज़ाहिर है बे-रुख़ी
साहिल-नवाज़ वक़्त का धारा नहीं रहा