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ख़ुश-फमी-ए-हुनर ने सँभलने नहीं दिया | शाही शायरी
KHush-fahmi-e-hunar ne sambhalne nahin diya

ग़ज़ल

ख़ुश-फमी-ए-हुनर ने सँभलने नहीं दिया

दरवेश भारती

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ख़ुश-फमी-ए-हुनर ने सँभलने नहीं दिया
मुझ को मिरी अना ही ने फलने नहीं दिया

चाहा नए से रीती-रिवाजों में मैं ढलूँ
लेकिन रिवायतों ने ही ढलने नहीं दिया

एक एक शय बदलती गई मेरे आस-पास
हालात ने मुझे ही बदलने नहीं दिया

चलना था साथ साथ हमें उम्र-भर मगर
ना-पाएदार उम्र ने चलने नहीं दिया

दिल मय-कदे की सम्त चला था मगर उसे
इस रास्ते पे अक़्ल ने चलने नहीं दिया

अंजाम आरज़ू का बुरा है बस इस लिए
दिल में कभी चराग़ ये जलने नहीं दिया

'दरवेश' बे-क़रार रहा दिल तमाम-उम्र
मौक़ा सुकूँ का एक भी पल ने नहीं दिया