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ख़ुश-बख़्त हैं आज़ाद हैं जो अपने सुख़न में | शाही शायरी
KHush-baKHt hain aazad hain jo apne suKHan mein

ग़ज़ल

ख़ुश-बख़्त हैं आज़ाद हैं जो अपने सुख़न में

अबरार हामिद

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ख़ुश-बख़्त हैं आज़ाद हैं जो अपने सुख़न में
ख़ुश-बख़्त हैं जो क़ैद है नेकी के चलन में

इस आँख ने क्या होता हुआ देख लिया है
भौंचाल सा बरपा है अजब मेरे बदन में

जो काम करो जब भी करो डूब के उस में
हर एक तहय्युर है जुनूँ-ज़ाद लगन में

ग़म्माज़ तो कुछ होता है आदात का चेहरा
सूरज का तसव्वुर भी तो होता है किरन में