ख़ुर्शीद की निगाह से शबनम को आस क्या
तस्वीर-ए-रोज़गार से दिल है उदास क्या
शोहरत की गर्द ख़्वाब के तूफ़ाँ ग़मों की धूल
इन के सिवा है और ज़माने के पास क्या
टूटा न ज़ोर-ए-ग़म न ज़माने का सर झुका
निकलेगी वस्ल-ए-यार से दिल की भड़ास क्या
हम को किताब-ए-ज़ीस्त का हर बाब हिफ़्ज़ है
इक बाब-ए-ग़म का सिर्फ़ पढ़ें इक़्तिबास क्या
निकले हैं ज़हर कर्ब में बुझ कर तमाम लफ़्ज़
घोलें सुबू-ए-शे'र में ग़म की मिठास क्या
जिन की नज़र में हेच है ताज-ए-हुनर 'नईम'
उन के हुज़ूर मैं क्या मिरी इल्तिमास क्या
ग़ज़ल
ख़ुर्शीद की निगाह से शबनम को आस क्या
हसन नईम