ख़ुम न बन कर ख़ुद-ग़रज़ हो जाइए
मिस्ल-ए-साग़र और के काम आइए
अब्र-ए-रहमत सुनते हैं नाम आप का
ख़ाकसारों पर करम फ़रमाइए
आप आहू-चश्म हैं आहू नहीं
हम से वहशत की न लीजे आइए
सब्र रुख़्सत हो तो जाने दीजिए
बे-क़रारी आए तो ठहराइए
जौहर-ए-तेग़-ए-निगह खुल जाएगा
मुँह न मेरे ज़ख़्म का खुलवाइए
दिल में है दिखलाइए तासीर-ए-इश्क़
ठंडी साँसों से उन्हें गर्माइए
सर्द आहें भरते हैं जब हम 'नसीम'
कहते हैं वो ठंडे ठंडे जाइए
ग़ज़ल
ख़ुम न बन कर ख़ुद-ग़रज़ हो जाइए
पंडित दया शंकर नसीम लखनवी