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ख़ुम न बन कर ख़ुद-ग़रज़ हो जाइए | शाही शायरी
KHum na ban kar KHud-gharaz ho jaiye

ग़ज़ल

ख़ुम न बन कर ख़ुद-ग़रज़ हो जाइए

पंडित दया शंकर नसीम लखनवी

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ख़ुम न बन कर ख़ुद-ग़रज़ हो जाइए
मिस्ल-ए-साग़र और के काम आइए

अब्र-ए-रहमत सुनते हैं नाम आप का
ख़ाकसारों पर करम फ़रमाइए

आप आहू-चश्म हैं आहू नहीं
हम से वहशत की न लीजे आइए

सब्र रुख़्सत हो तो जाने दीजिए
बे-क़रारी आए तो ठहराइए

जौहर-ए-तेग़-ए-निगह खुल जाएगा
मुँह न मेरे ज़ख़्म का खुलवाइए

दिल में है दिखलाइए तासीर-ए-इश्क़
ठंडी साँसों से उन्हें गर्माइए

सर्द आहें भरते हैं जब हम 'नसीम'
कहते हैं वो ठंडे ठंडे जाइए