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ख़ुलूस-ए-अल्फ़ाज़ काम आया निगाह-ए-अहल-ए-फ़ितन से पहले | शाही शायरी
KHulus-e-alfaz kaam aaya nigah-e-ahl-e-fitan se pahle

ग़ज़ल

ख़ुलूस-ए-अल्फ़ाज़ काम आया निगाह-ए-अहल-ए-फ़ितन से पहले

अर्शी भोपाली

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ख़ुलूस-ए-अल्फ़ाज़ काम आया निगाह-ए-अहल-ए-फ़ितन से पहले
नवेद-ए-दिल ने मुझे पुकारा सदा-ए-दार-ओ-रसन से पहले

वजूद-ए-चर्ख़-ए-कुहन से पहले क़याम-ए-दार-ओ-रसन से पहले
हमीं थे तेरे चमन की ज़ीनत बहार-ए-हुस्न-ए-चमन से पहले

सुकूत-ए-ग़म की अदा अदा को समझ सकें काश अहल-ए-आलम
इशारा-हा-ए-लतीफ़ भी हैं जबीं पे नक़्श-ए-शिकन से पहले

बहार-ए-बे-कैफ़ किस लिए है गुलों पे रंग-ए-शिकस्त क्यूँ है
अभी तो कितनी ही बिजलियाँ हैं चमन में तर्क-ए-चमन से पहले