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खुली वो ज़ुल्फ़ तो पहली हसीन रात हुई | शाही शायरी
khuli wo zulf to pahli hasin raat hui

ग़ज़ल

खुली वो ज़ुल्फ़ तो पहली हसीन रात हुई

अब्दुल हमीद अदम

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खुली वो ज़ुल्फ़ तो पहली हसीन रात हुई
उठी वो आँख तो तख़लीक़-ए-काएनात हुई

ख़ुदा ने गढ़ तो दिया आलम-ए-वजूद मगर
सजावटों की बिना औरतों की ज़ात हुई

गिले बहुत थे मगर जब नज़र नज़र से मिली!
न मुझ से बात हुई और न उन से बात हुई

दिल-ए-तबाह को कुछ और कर गई ज़ख़्मी!
वो इक निगाह जो लबरेज़-ए-इल्तिफ़ात हुई

हयात ओ मौत की ग़ारत-गरी का हाल न पूछ
जो मौत न बन सकी वो 'अदम' हयात हुई