ख़ुदाया हिन्द पर तेरी इनायत हो इनायत हो
बरादर को बरादर से मोहब्बत हो मोहब्बत हो
न हिन्दू को मुसलमाँ से अदावत हो अदावत हो
मुसलमाँ को न हिन्दू से कुदूरत हो कुदूरत हो
तिरी ऐ फूट जिस घर में इक़ामत हो इक़ामत हो
न क्यूँ बे-इंतिहा उस में मुसीबत हो मुसीबत हो
यही है मुद्दआ अपना यही है इल्तिजा अपनी
वतन में रात-दिन यारब मसर्रत हो मसर्रत हो
शरफ़ इस ख़ाक के पुतले को है इंसान होने का
ग़रीब-ए-ज़ार पर जिस की इनायत हो इनायत हो
हक़ीक़त में वही है बहरा-वर इश्क़-ए-हक़ीक़ी से
उरूस-ए-मुल्क से जिस को मोहब्बत हो मोहब्बत हो
इबादत नाम है उस का शरीअ'त है लक़ब उस का
दिल-ओ-जाँ से जो ख़िल्क़त की इताअ'त हो इताअ'त हो
जो हो हमदर्द ख़िल्क़त का वतन का जो मुरब्बी हो
ग़ज़ब है ज़ात पर उस की अज़िय्यत हो अज़िय्यत हो
दिल-ओ-जाँ दीन-ओ-ईमाँ मुल्क-ओ-दौलत पर जो आदी हैं
इलाही उन की आँखों में मुरव्वत हो मुरव्वत हो
सज़ा-वार-ए-ख़िताब-ए-ख़िज़्र वो इंसाँ है दुनिया में
कि रह-गुम-कर्दा की जिस से हिदायत हो हिदायत हो
तुझे ऐ 'बर्क़' हम समझेंगे अहल-ए-दिल अगर तुझ से
दम-ए-मुश्किल ख़लाएक की इआनत हो इआनत हो
ग़ज़ल
ख़ुदाया हिन्द पर तेरी इनायत हो इनायत हो
श्याम सुंदर लाल बर्क़