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ख़ुदा शाहिद बुतो दो-जग से ये सौदा है निर्वाला | शाही शायरी
KHuda shahid buto do-jag se ye sauda hai nirwala

ग़ज़ल

ख़ुदा शाहिद बुतो दो-जग से ये सौदा है निर्वाला

वली उज़लत

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ख़ुदा शाहिद बुतो दो-जग से ये सौदा है निर्वाला
मैं दो बादाम-ए-चश्म-ए-लुत्फ़ पर दिल बेचने वाला

दोनो आलम से मशरब मस्त-ए-वहदत का है निर्वाला
मिरे एक हाथ में तस्बीह है इक हाथ में प्याला

नहीं इस साल वो ख़ूनीं-नयन भूरे अलक वाला
लगो लाला को आग और हो जो ना-फ़रमाँ का मुँह काला

वो शीरीं-लब का बोसा क्यूँके छोड़े मुझ सा मतवाला
कि जूँ लाला बिछड़ते उस दहन से दाग़ हो पाला

नहीं फ़ारिग़ मैं बा'द-अज़-मर्ग भी सोज़-ए-मोहब्बत से
मिरा ख़ूँ दामन-ए-क़ातिल में होगा दाग़ जूँ लाला

वो ना-फ़रमाँ बना ख़ून-ए-जिगर से मय न पी उज़्लत
कबाब-ए-दिल की बू आती है हर प्याले से जूँ लाला