ख़ुदा ने क्यूँ दिल-ए-दर्द-आश्ना दिया है मुझे
इस आगही ने तो पागल बना दिया है मुझे
तुम्ही को याद न करता तो और क्या करता
तुम्हारे बा'द सभी ने भुला दिया है मुझे
सऊबतों में सफ़र की कभी जो नींद आई
मिरे बदन की थकन ने उठा दिया है मुझे
मैं वो चराग़ हूँ जो आँधियों में रौशन था
ख़ुद अपने घर की हवा ने बुझा दिया है मुझे
बस एक तोहफ़ा-ए-इफ़्लास के सिवा 'साक़ी'
मशक़्क़तों ने मिरी और क्या दिया है मुझे
ग़ज़ल
ख़ुदा ने क्यूँ दिल-ए-दर्द-आश्ना दिया है मुझे
साक़ी अमरोहवी