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ख़ुदा की शान वो ख़ुद हो रहे हैं दीवाने | शाही शायरी
KHuda ki shan wo KHud ho rahe hain diwane

ग़ज़ल

ख़ुदा की शान वो ख़ुद हो रहे हैं दीवाने

जिगर बरेलवी

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ख़ुदा की शान वो ख़ुद हो रहे हैं दीवाने
जो राह-ए-दश्त से आए थे हम को पलटाने

निकल चले तो हैं तर्ग़ीब-ए-दिल पे हम घर से
कहाँ लगेंगे ठिकाने ये अब ख़ुदा जाने

न दिल रहा न रही दिल की ख़ाक भी बाक़ी
हुज़ूर आए हैं अब इंतिज़ार फ़रमाने

जो दिल की आग से वाक़िफ़ बनें वो क्या जाने
लिपट के शम्अ' से क्यूँ जल रहे हैं परवाने

निगाह जिन को मिली है वो लुत्फ़ लेते हैं
छलक रहे हैं पड़े कैफ़ियत से वीराने

नहीं है सीने में पैवस्त जिस के तीर-ए-निगाह
वो राह-ओ-रस्म हयात-ओ-ममात क्या जाने

चले तो हैं कि दिखाएँगे उन को चीर के दिल
पहुँच सकेंगे हम उन तक ये अब ख़ुदा जाने

घटे तो चैन नहीं है बढ़े तो चैन नहीं
हमें लगा है ये क्या रोग कोई पहचाने

है सर पे बोझ तो क्या है मगर बढ़े निकलो
न उठ सकोगे जो बैठे ज़रा भी सुस्ताने

तमाम उम्र हुई एक ही रविश पे 'जिगर'
हज़ार बार हमें आज़माया दुनिया ने