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ख़ुदा करे तो किसी राज़ का अमीं न बने | शाही शायरी
KHuda kare to kisi raaz ka amin na bane

ग़ज़ल

ख़ुदा करे तो किसी राज़ का अमीं न बने

मूसा रज़ा

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ख़ुदा करे तो किसी राज़ का अमीं न बने
गुमाँ गुमाँ ही रहे और कभी यक़ीं न बने

तुझे ये शौक़ कि पर्वाज़ हो बुलंद अपनी
मुझे ये डर कि कभी आसमाँ ज़मीं न बने

ये बात और है कोशिश हज़ार की हम ने
हमारे शे'र तुम्हारी तरह हसीं न बने

ये अलमिया है हमारा कि हम ब-हर-सूरत
तमाशा-गाह रहे और तमाश-बीं न बने

अजब वो ग़ुर्बत-ए-दीवार-ओ-बाम-ओ-दर थी कि हम
मकान में रहे लेकिन कभी मकीं न बने

उठाओ हाथ दुआ को तो एहतियात रहे
ये हाथ उठ के कभी नंग-ए-आस्तीं न बने