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ख़ुदा करे कि नज़र कामयाब हो जाए | शाही शायरी
KHuda kare ki nazar kaamyab ho jae

ग़ज़ल

ख़ुदा करे कि नज़र कामयाब हो जाए

बाबू सि द्दीक़ निज़ामी

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ख़ुदा करे कि नज़र कामयाब हो जाए
तिरी नज़र में मिरा इंतिख़ाब हो जाए

वो सामने मिरे बे-पर्दा आ गए लेकिन
मज़ा तो जब है कि फिर से हिजाब हो जाए

किए थे वस्ल के वा'दे हज़ार तुम ने मगर
मैं आज आ ही गया लो हिसाब हो जाए

बिखेर रुख़ पे ज़रा अपने इस तरह ज़ुल्फ़ें
कि ज़ुल्फ़ चेहरे पे तेरे नक़ाब हो जाए

इलाही वस्फ़ हो दिल में तो मेरे इतना हो
भरूँ जो चुल्लू में पानी शराब हो जाए