ख़ुदा हम को ऐसी ख़ुदाई न दे
कि अपने सिवा कुछ दिखाई न दे
ख़ता-वार समझेगी दुनिया तुझे
अब इतनी ज़ियादा सफ़ाई न दे
हँसो आज इतना कि इस शोर में
सदा सिसकियों की सुनाई न दे
ग़ुलामी को बरकत समझने लगें
असीरों को ऐसी रिहाई न दे
ख़ुदा ऐसे एहसास का नाम है
रहे सामने और दिखाई न दे
ग़ज़ल
ख़ुदा हम को ऐसी ख़ुदाई न दे
बशीर बद्र