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ख़ुदा भी मेरी तरह बा-कमाल ऐसा था | शाही शायरी
KHuda bhi meri tarah ba-kamal aisa tha

ग़ज़ल

ख़ुदा भी मेरी तरह बा-कमाल ऐसा था

अनवर महमूद खालिद

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ख़ुदा भी मेरी तरह बा-कमाल ऐसा था
तराशा उस को जो मेरे ख़याल ऐसा था

हर एक लम्हा यही डर था खो न जाए कहीं
रहा वो पास मगर एहतिमाल ऐसा था

था तितलियों के परों सा लतीफ़ उस का बदन
जो ताब-ए-लम्स न रक्खे जमाल ऐसा था

पिघलती चाँदी था निस्फ़-उन-नहार पर जब था
बिखरता सोना था सूरज ज़वाल ऐसा था

झुकाए रखता था पलकें वो बातें करते हुए
कहाँ का शोख़ था ख़ल्वत में हाल ऐसा था

लबों से फूट बहा गीत सिसकियाँ बन कर
कि लफ़्ज़ लफ़्ज़ में उस के मलाल ऐसा था

हुए असीर तो फिर उम्र भर रिहा न हुए
हमारे गिर्द तअल्लुक़ का जाल ऐसा था