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ख़ुद से रिश्ते रहे कहाँ उन के | शाही शायरी
KHud se rishte rahe kahan un ke

ग़ज़ल

ख़ुद से रिश्ते रहे कहाँ उन के

जौन एलिया

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ख़ुद से रिश्ते रहे कहाँ उन के
ग़म तो जाने थे राएगाँ उन के

मस्त उन को गुमाँ में रहने दे
ख़ाना-बर्बाद हैं गुमाँ उन के

यार सुख नींद हो नसीब उन को
दुख ये है दुख हैं बे-अमाँ उन के

कितनी सरसब्ज़ थी ज़मीं उन की
कितने नीले थे आसमाँ उन के

नौहा-ख़्वानी है क्या ज़रूर उन्हें
उन के नग़्मे हैं नौहा-ख़्वाँ उन के