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ख़ुद से मैं बे-यक़ीं हुआ ही नहीं | शाही शायरी
KHud se main be-yaqin hua hi nahin

ग़ज़ल

ख़ुद से मैं बे-यक़ीं हुआ ही नहीं

आस मोहम्मद मोहसिन

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ख़ुद से मैं बे-यक़ीं हुआ ही नहीं
आसमाँ था ज़मीं हुआ ही नहीं

इश्क़ कहते हैं सब जिसे हम से
वो गुनाह-ए-हसीं हुआ ही नहीं

वस्ल भी उस का उस के जैसा था
जो गुमाँ से यक़ीं हुआ ही नहीं

ख़ाना-ए-दिल सरा की सूरत है
कोई इस में मकीं हुआ ही नहीं

लाख चाहा मगर सुख़न मेरा
क़ाबिल-ए-आफ़रीं हुआ ही नहीं

मैं भी ख़ुद को सँवारता 'मोहसिन'
आइना नुक्ता-चीं हुआ ही नहीं