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ख़ुद से इतनी भी अदावत तो नहीं कर सकता | शाही शायरी
KHud se itni bhi adawat to nahin kar sakta

ग़ज़ल

ख़ुद से इतनी भी अदावत तो नहीं कर सकता

काशिफ़ रफ़ीक़

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ख़ुद से इतनी भी अदावत तो नहीं कर सकता
अब कोई मुझ से मोहब्बत तो नहीं कर सकता

क्यूँ निभाएगा वो पैमान-ए-वफ़ा मुझ से कि वो
सारी दुनिया से बग़ावत तो नहीं कर सकता

गो वो मुजरिम है मिरा फिर भी किसी शख़्स से मैं
अपने दिलबर की शिकायत तो नहीं कर सकता

दो-घड़ी साँस तो लेने दे मुझे ऐ ग़म-ए-दहर
कोई हर आन मशक़्क़त तो नहीं कर सकता

ख़ास होता है किसी का कोई मंज़ूर-ए-नज़र
कोई हर इक पे इनायत तो नहीं कर सकता

कैसे लिक्खूँ मैं अँधेरे को उजाला 'काशिफ़'
अपने फ़न से मैं ख़यानत तो नहीं कर सकता