ख़ुद से भी वो डरता होगा
वो भी मेरे जैसा होगा
ज़ख़्म-ए-जिगर से जो टपका है
उस की आँख से बहता होगा
सोचों में आए चुपके से
नंगे पाँव चलता होगा
दर पे दस्तक देने वाला
उस की याद का झोंका होगा
महक उठा है मेरा बदन भी
ख़ुश्बू में वो रहता होगा
सत्ह-ए-आब पे इक चेहरा है
लहरों में वो रहता होगा
अब तो ख़्वाब जज़ीरों में वो
याद के कंकर चुनता होगा
खोया खोया सा ख़ुद मैं ही
लोगों से वो मिलता होगा
देख के गिरते पत्तों को वो
पहरों बैठ के रोता होगा
दश्त-ए-ग़म के सन्नाटे में
वो भी तन्हा तन्हा होगा
दिल में छुपा कर मेरी यादें
पहरों नज़्में लिखता होगा
मस्त हवाओं से ही 'उमर' वो
मेरे नग़्मे सुनता होगा

ग़ज़ल
ख़ुद से भी वो डरता होगा
ख़ालिद महमूद अमर