EN اردو
ख़ुद-परस्ती से इश्क़ हो गया है | शाही शायरी
KHud-parasti se ishq ho gaya hai

ग़ज़ल

ख़ुद-परस्ती से इश्क़ हो गया है

अम्मार इक़बाल

;

ख़ुद-परस्ती से इश्क़ हो गया है
अपनी हस्ती से इश्क़ हो गया है

जब से देखा है इस फ़क़ीरनी को
फ़ाक़ा-मस्ती से इश्क़ हो गया है

एक दरवेश को तिरी ख़ातिर
सारी बस्ती से इश्क़ हो गया है

ख़ुद तराशा है जब से बुत अपना
बुत-परस्ती से इश्क़ हो गया है

ये फ़लक-ज़ाद की कहानी है
इस को पस्ती से इश्क़ हो गया है