EN اردو
ख़ुद मैं ज़िंदाँ में हूँ तीरगी के | शाही शायरी
KHud main zindan mein hun tirgi ke

ग़ज़ल

ख़ुद मैं ज़िंदाँ में हूँ तीरगी के

महशर बदायुनी

;

ख़ुद मैं ज़िंदाँ में हूँ तीरगी के
हर्फ़ दूँगा यूँही रौशनी के

मैं इसे कार-नामा कहूँगा
कोई पहचान ले दुख किसी के

ख़ुद भी मैं जल रहा हूँ जला कर
ताक़-ए-जाँ में चराग़ आगही के

मेरे अस्बाब नाम-ओ-नुमू क्या
बस यही बाँकपन सादगी के

सब ग़ुबार अपनी अपनी हवा में
उस गली के हों या इस गली के

मौत का दर खुला क्या कि मुझ पर
सारे दर खुल गए ज़िंदगी के

हम-रही तो बजा सोच लीजे
रास्ते सख़्त हैं रास्ती के