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ख़ुद मैं धूनी रमाए बैठी हूँ | शाही शायरी
KHud main dhuni ramae baiThi hun

ग़ज़ल

ख़ुद मैं धूनी रमाए बैठी हूँ

आसिमा ताहिर

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ख़ुद मैं धूनी रमाए बैठी हूँ
आज ख़ुद को भुलाए बैठी हूँ

जाने वालों का इंतिज़ार नहीं
अपने रस्ते में आए बैठी हूँ

उस की आँखों में है तिलिस्म कोई
अपना चेहरा लुटाए बैठी हूँ

चाँद को तैश आ रहा है कि मैं
क्यूँ नज़र को मिलाए बैठी हूँ

फूल खिलते हैं मुझ में शेरों के
एक मिस्रा समाए बैठी हूँ

राहगुज़र एहतिराम कर मेरा
मैं किसी के बुलाए बैठी हूँ

हर ख़ुशी ज़र्द हो गई जैसे
इक अज़िय्यत भुलाए बैठी हूँ

आइने पर तो है भरोसा मुझे
उस से क्यूँ मुँह छुपाए बैठी हूँ

चुभ रही है अँधेरी रात मुझे
हर सितारा बुझाए बैठी हूँ