ख़ुद को जब से जान गए हम
दुनिया को पहचान गए हम
दुश्मन को जब पास से देखा
दोस्त को भी पहचान गए हम
मन में कैसी आग लगी ये
तन की चादर तान गए हम
उस के दयार-ए-शौक़ से अक्सर
ख़ुद ही तही-दामान गए हम
ग़ज़ल
ख़ुद को जब से जान गए हम
रफ़अत शमीम
ग़ज़ल
रफ़अत शमीम
ख़ुद को जब से जान गए हम
दुनिया को पहचान गए हम
दुश्मन को जब पास से देखा
दोस्त को भी पहचान गए हम
मन में कैसी आग लगी ये
तन की चादर तान गए हम
उस के दयार-ए-शौक़ से अक्सर
ख़ुद ही तही-दामान गए हम