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ख़ुद किसी सत्ह पे आने में बड़ा वक़्त लगा | शाही शायरी
KHud kisi sath pe aane mein baDa waqt laga

ग़ज़ल

ख़ुद किसी सत्ह पे आने में बड़ा वक़्त लगा

वक़ार मानवी

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ख़ुद किसी सत्ह पे आने में बड़ा वक़्त लगा
अपनी पहचान बनाने में बड़ा वक़्त लगा

ख़्वाहिश-ए-दीद के इज़हार में भी देर लगी
उन को भी पर्दा उठाने में बड़ा वक़्त लगा

घर से हिजरत पे निकल जाना था लम्हों का अमल
फिर कहीं बसने बसाने में बड़ा वक़्त लगा

ताज़ियत कीजिए अब वक़्त-ए-अयादत तो गया
आप आए मगर आने में बड़ा वक़्त लगा

बर्क़ ने फूँक दिया था जिसे आनन-फ़ानन
उस नशेमन को बनाने में बड़ा वक़्त लगा

साअ'त-ए-ऐश के अरमाँ का नतीजा मा'लूम
ग़म से दामन को छुड़ाने में बड़ा वक़्त लगा

कैसे हालात की दलदल से निकलते कि 'वक़ार'
पाँव भी हम को जमाने में बड़ा वक़्त लगा