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ख़ुद ख़मोशी के हिसारों में रहे | शाही शायरी
KHud KHamoshi ke hisaron mein rahe

ग़ज़ल

ख़ुद ख़मोशी के हिसारों में रहे

हामिदी काश्मीरी

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ख़ुद ख़मोशी के हिसारों में रहे
रात भर चर्चे सितारों में रहे

थी ज़मीन-ए-गुल नज़र के सामने
जादा-पैमा रेग-ज़ारों में रहे

हो गए हैं कितने मंज़िल-आश्ना
कितने रह-रौ रहगुज़ारों में रहे

हो गईं ग़र्क़ाब कितनी बस्तियाँ
कितने तूफ़ाँ जुएबारों में रहे

ज़ुल्मत-ए-शब पास आ सकती नहीं
मुद्दतों हम माह-पारों में रहे

है ख़िज़ाँ की धूल की तन पर तहें
हम रहे तो नौ-बहारों में रहे