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ख़ुद ही बे-आसरा करते हैं | शाही शायरी
KHud hi be-asra karte hain

ग़ज़ल

ख़ुद ही बे-आसरा करते हैं

हामिदी काश्मीरी

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ख़ुद ही बे-आसरा करते हैं
हाथ उठा कर दुआ भी करते हैं

रात भर पेड़ चुप भी रहते हैं
दिल में महशर बपा भी करते हैं

छीन लेते नहीं बसारत ही
वो तो बे-दस्त-ओ-पा भी करते हैं

कोई पहचान हो नहीं पाती
पर्दे क्या क्या उठा भी करते हैं

आते ही सर क़लम नहीं करते
पहले ख़ुद आश्ना भी करते हैं

वार करते नहीं वो छुप कर ही
किश्त ओ ख़ूँ बरमला भी करते हैं