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ख़ुद-फ़रामोश जो पाया है मुझे दुनिया ने | शाही शायरी
KHud-faramosh jo paya hai mujhe duniya ne

ग़ज़ल

ख़ुद-फ़रामोश जो पाया है मुझे दुनिया ने

अख़तर बस्तवी

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ख़ुद-फ़रामोश जो पाया है मुझे दुनिया ने
मेरे हाथों से भी लूटा है मुझे दुनिया ने

दिल तो बे-दाम बिका ज़ेहन की क़ीमत न लगी
कैसे बाज़ार में बेचा है मुझे दुनिया ने

वक़्फ़-ए-जज़्बात न होने की सज़ा दी है अजब
आतिश-ए-सर्द में फूँका है मुझे दुनिया ने

हम-सफ़र मुझ को बनाने से गुरेज़ाँ है मगर
हर नए मोड़ पे ढूँडा है मुझे दुनिया ने

बे-असर मेरी फ़ुतूहात रही हैं 'अख़्तर'
मैं जो हारा हूँ तो पूजा है मुझे दुनिया ने