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ख़ुद अपने उजाले से ओझल रहा है दिया जल रहा है | शाही शायरी
KHud apne ujale se ojhal raha hai diya jal raha hai

ग़ज़ल

ख़ुद अपने उजाले से ओझल रहा है दिया जल रहा है

इनाम नदीम

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ख़ुद अपने उजाले से ओझल रहा है दिया जल रहा है
नहीं जानते किस तरह जल रहा है दिया जल रहा है

समुंदर की मौजों को छू कर हवाएँ पलटने लगी हैं
सितारा फ़लक पर कहीं चल रहा है दिया जल रहा है

कोई फ़ैसला तो करो रास्ते से गुज़रती हवाओ
ये क़िस्सा बड़ी देर से टल रहा है दिया जल रहा है

कहीं दूर तक कोई जुगनू नहीं है सितारे बुझे हैं
चमकता हुआ चाँद भी ढल रहा है दिया जल रहा है

कोई याद फिर दिल में आ कर बसी है महक सी हुई है
कोई ख़्वाब आँखों में फिर पल रहा है दिया जल रहा है